Classical
Rangmahal Ke Dus Darwaze (Satyam Shivam Sundaram)
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Movie/Album: Satyam Shivam Sundaram
Release: 1978
Music Director: Laxmikant-Pyarelal
LyricsAnand Bakshi
Singers: Lata Mangeshkar, Bhupinder
[/wr_text][/wr_column][wr_column span=”span4″][wr_text el_title=”Lyrics” div_margin_top=”10″ div_margin_bottom=”10″ enable_dropcap=”no” disabled_el=”no” ]Lyrics in Hindi
[/wr_text][wr_text el_title=”Lyrics” div_margin_top=”10″ div_margin_bottom=”10″ enable_dropcap=”no” disabled_el=”no” ]
रंगमहल के दस दरवाज़े -२
ना जाने कौन सी खिड़की खुली थी
सैय्या निकस गए मैं न लड़ी थी-२
सर को झुकाये मैं तो चुपके खड़ी थी
सैय्याँ निकस—
-पिया कौन गली गए श्याम -२
मोरी सुध ना लीन्ही हाय राम
पिया कौन गली गए श्याम
अंग मेरे गहने प्यासी उमरिया–२
जोगन हो गयी मैं बिन सांवरिया
हाथों में मेरे मेहँदी रची थी
मेहँदी में मेरे असुवन की लड़ी थी
सैय्याँ निकस —-
छोड़ पिया घर नैहर जाऊं–२
वादे हरी अब सीस झुकाऊं
कर सिंगार में दुल्हन बनी थी
ऐसी दुल्हन से कुंवारी भली थी
सैय्या निकस—-
[/wr_text][/wr_column][wr_column span=”span4″][wr_text el_title=”Trivia” div_margin_top=”10″ div_margin_bottom=”10″ enable_dropcap=”no” disabled_el=”no” ]Song Trivia[/wr_text][wr_text el_title=”Song Trivia” div_margin_top=”10″ div_margin_bottom=”10″ enable_dropcap=”no” disabled_el=”no” ][/wr_text][/wr_column][/wr_row][wr_row width=”boxed” background=”none” solid_color_value=”#FFFFFF” solid_color_color=”#ffffff” gradient_color=”0% #FFFFFF,100% #000000″ gradient_direction=”vertical” repeat=”full” stretch=”none” position=”center center” paralax=”no” border_width_value_=”0″ border_style=”solid” border_color=”#000″ div_padding_top=”10″ div_padding_bottom=”10″ div_padding_right=”10″ div_padding_left=”10″ ][wr_column span=”span6″][wr_text el_title=”Official” div_margin_top=”10″ div_margin_bottom=”10″ enable_dropcap=”no” disabled_el=”no” ]Official Video[/wr_text][wr_video el_title=”Title” video_source_link_youtube=”https://www.youtube.com/watch?v=Us-iob1COj8″ video_youtube_dimension_width=”500″ video_youtube_dimension_height=”270″ video_youtube_autoplay=”0″ video_youtube_loop=”0″ video_youtube_modestbranding=”1″ video_youtube_rel=”1″ video_youtube_showinfo=”1″ video_youtube_autohide=”2″ video_youtube_cc=”0″ video_alignment=”center” video_margin_top=”10″ video_margin_bottom=”10″ disabled_el=”no” video_sources=”youtube” ][/wr_video][/wr_column][wr_column span=”span6″][wr_text el_title=”Other” div_margin_top=”10″ div_margin_bottom=”10″ enable_dropcap=”no” disabled_el=”no” ]Other Renditions[/wr_text][wr_video video_youtube_dimension_width=”500″ video_youtube_dimension_height=”270″ video_youtube_autoplay=”0″ video_youtube_loop=”0″ video_youtube_modestbranding=”1″ video_youtube_rel=”1″ video_youtube_showinfo=”1″ video_youtube_autohide=”2″ video_youtube_cc=”0″ video_alignment=”center” video_margin_top=”10″ video_margin_bottom=”10″ disabled_el=”no” video_sources=”youtube” ][/wr_video][/wr_column][/wr_row]
Rakesh kr. Verma
May 23, 2021 at 5:57 pm
गीत – रंगमहल के दस दरवाजे
चित्रपट – सत्यम् शिवम् सुन्दरम्(1978)
गीतकार – विट्ठलभाई पटेल
भक्तों पर जब श्रीविष्णु का वात्सल्य बरसता है तब उनकी आराधना विट्ठल के रूप में होती है। विविध अलंकारों का सार्वभौमिक प्रभाव इन्द्रधनुषी प्रकीर्णन के साथ आत्मा को भेद जाना ही इस गीत की प्रासंगिकता है। यह गीत मृत्यु की अनिवार्यता और हमारी आत्मा की तरलता को दर्शाता है, जो हमारे भौतिक शरीर से सर्वदा मुक्त है। कबीर कहते हैं -’दस द्वारे का पिंजरा, तामै पंक्षी कौन? पांच ज्ञानेन्द्रियां और पांच कर्म इन्द्रियां मिलकर शरीर के दस द्वार बनाते हैं जिसमें आत्मा वास करती है। इसकी मुक्ति केवल हृदय और बुद्धि की नहीं अपितु इसमें बाधित देह की मुक्ति ही पूर्ण मुक्ति होगी। मुण्डकोपनिषद् में आत्मा के लिए रूपक के लिए पंक्षी का चयन किया गया है।
द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते।
तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति ॥
एक डाल पर बैठे दो पक्षियों द्वारा जीव और ब्रम्ह की विवेचना की गई है। कला और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पक्षियों का यह व्यवहार्य महर्षि अरविन्द के लिए उध्र्व आरोहण का प्रतीक है, वहीं सुमित्रानंदन पंत इसे प्रकृति के सौन्दर्य से जोड़ते हैं।
महाभारत में पक्षी के साथ मनुष्य के दो संबंध हैं पहला बन्ध संबंध जबकि दूसरा वस संबंध। अर्थात् या तो पक्षी मनुष्य के प्रेम भाव की अनुभूति है अथवा उसका भोजन, मनुष्य की सीमायें हैं उसमें इन्द्रियों के दस दरवाजे हैं जिसमें आत्मा के पंक्षी का फुदकना, पिंजरे को घर समझना माया-मोह का ऐसा ताना-बाना है जिससे हम जिन्दगी का तिलिम्स गढ़ते हैं।
गीत के अर्थ अनुसार ‘मैने सारे दरवाजेबंद कर लिए शायद एकात् खिड़की खुली रह गई जिससे प्रियतम निकल गये।’ अध्यात्मिक दृष्टि से रहस्यवादी प्रेमी शरीर के भीत रहने वाली आत्मा या जीवन हो सकता है। मृत्यु होने पर आत्मा रह जाती है और शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाता है।
‘‘पिया कौन गली …. राग खमाज पर आधारित यह ठुमरी कृष्णवियोग से व्यथित गोपियों का क्रन्दन है। अध्यात्मिक दृष्टि से यदि शरीर को संसार मान लें तो ईश्वर को कहां महसूस करेंगे? वह किस बिन्दु के अवचेतन पर स्थित है? उस अदृश्य मोहक शक्ति की लालसा हृदयतन्तु के खिंचाव की अनुभूति है जो प्रत्यक्षतः प्रकट नहीं होती।
‘‘अंग मेरे गहने …. तन को विषयों मे लिप्त करने से तृष्णा बढ़ती जाती है जिस प्रकार अर्क, जवास वनस्पतियां अमृतमयी वृष्टि पाकर भी कुम्हला जाती है। कबीरदास जी कहते हैं-
माया मरी न मन मरा, मर मर गये शरीर।
आशा तृष्णा न मरी, कह गये दास कबीर।।
अगर भक्तिरूपी अश्रुओं की श्रृंखलाओं से मंेहदी की रचना की होती तो इस प्रकार का पछतावा नहीं होता लेकिन प्रतिसाद के अपेक्षा में किया गया कृत्य त्याग नहीं हो सकता। क्योंकि मंदिर वही पहुंचता है जो कृतज्ञता व्यक्त करे। सांसारिक माया-मोह से प्रेरित हो मांगने से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त नही हो सकता।
राकेश कुमार वर्मा
9926510851
Sushil Ojha
April 2, 2022 at 3:48 am
धन्यवाद
इन दस दरवाजे के नाम स्पष्ट करें